Shiksha jaruri hai - शिक्षा जरूरी है
एक बार एक गाँव में दो लड़के रहते थे, दोनों की प्रकृति भिन्न थी। दोनों के काम विपरित थे । एक का नाम राकेश था, दुसरे का नाम मुकेश था। जब दोनो को विद्यालय भेजा जाता था तो राकेश विद्यालय जाने से कतराता था। दूसरी तरफ मुकेश को विद्यालय जाना पसन्द था क्योंकि उसे नये-नये चीजे जानना और पढ़ना अच्छा लगता था। राकेश जब विद्यालय नहीं जाना चाहता था तो उसके माँ-बाप उसपर जरा सा भी दबाव नहीं डालता था। उसके माता-पिता का मानना था कि पढ़ने-लिखने से कुछ नहीं होगा। आखिर में उसे मेहनत-मजदुरी करके ही खाना पड़ेगा।
राकेश दिनभर शैतानी करके गाँव वालों को परेशान करता था। जब-जब गांव वाले उसके माँ-बाप की समझाने आते तो वह लोग हँस कर कहते - " जवान खून है अभी थोड़ी बदमाशी तो करेगा ही "
दूसरी तरफ मुकेश अच्छी - अच्छी चीजें विद्यालय से सीख कर आता और उसे अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करता, लोगो से अच्छे व्यवहार करना, जीवो की सेवा करना, पेड़-पौधे लगाना और साफ-सफाई रखना। एकदिन राकेश ने मुकेश के खेतों में भेड़-बकरियों को छोड़ दिया। उसके सारे साग-सब्जी खराब हो गये। मुकेश के माँ - बाप को जब पता चला वह राकेश के माँ-बाप के पास शिकायत करने पहुंचे। उस समय भी राकेश के माँ-बाप ने बात को टाल दिया।
मुकेश के पिता ने कहा - अरे समझाओ उसे और विद्यालय भेजो थोड़ा ज्ञान मिलेगा और संस्कार सीखेगा।
राकेश के माँ-बाप ने जवाब देते हुए कहा - तुमलोगों के लड़के तो विद्यालय जा रहे है ना, देखलूँगा वह क्या हासिल कर लेते है अपने जीवन में।
कुछ साल बीत गये मुकेश अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने पिताजी का व्यापार संभाल रहा था। उधर दूसरी ओर राकेश भी अपने पिता के साथ काम कर रहा था। दशहरा का समय था, गांव मे मेला लगा हुआ था।
दूर-दूर से लोग मेला देखने आये थें। तभी अचानक से मेले में एक गुस्सैल बैल घुस आया सब भागने लगे। गुस्सैल बैल इधर-उधर भाग रहा था। लोग भी भागने लगे इस भगदड़ में एक बच्चा एक जगह खड़ा होकर रोने लगा । बैल उसकी और दौड़ा उस वक्त मेले में राकेश और मुकेश दोनों मौजूद थे। दोनो उस बच्चे को बचाने दौड़े , मुकेश उसके बच्चे को उठाकर राकेश की तरफ फेंक दिया और खुद भी किनारे हो गया। मुकेश उठ कर बेल की ओर पानी फेंकने लगा तब बैल जंगल की और भाग गया। उस बच्चे का पिता वहां भागता हुआ आया। वह बच्चा एक सेठ का था, उसने बच्चे की जान बचाने की खातिर उन दोनों को बेस किमती सोने के ढेर सारि सिक्के दिए
मुकेश थोड़ा हिचकिचाया लेकिन सेठ के बहुत कहने पर उसने वह सिक्के रख लिए। राकेश ने वे सिक्के तुरंत बाजार जाकर बैच आया और कई दिन उस पैसे से मौज-मस्ती किया और सारे पैसे खर्च कर दिया। दूसरी तरफ मुकेश ने वे सिक्के घर जाकर रख दिया। कुछ दिन बाद जब मुकेश की घर की परिस्थिति थोड़ी खराब हो गयी तो उसने मजबूरी में उन सिक्को को एक सोनार के यहां बेच दिया। उसे ढेर सारे पैसे मिले जिससे वह नया व्यवसाय शुरू किया और उसका व्यवसाय जब अच्छी तरह से चलने लगा तो उसने वह सिक्के वापस ले लिए। कुछ दिनों बाद जब राकेश की परिस्थती खराब हो गयी तो वह और उसके माँ- बाप मुकेश के पास आया और कहा बेटा तुम इतने बड़े आदमी कैसे बन गये? मुकेश ने कहा - मुझे उस सेठ ने जो दिए सिक्के दिए, मुझे पता था की उसे कैसे उपयोग करना है।
तब गांव वालों ने राकेश और उसके माता पिता से कहा - " देख लिया न शिक्षा का महत्व, तुम्हारे बेटे को इतने सारे पैसे मिले उसने क्या किया? तुमने अगर पढ़ाया लिखाया होता तो आज तुम्हारा बेटा भी अमीर होता "
शिक्षा : दोस्तों, जिसके अन्दर शिक्षा होती है वह बेकार वस्तु को भी मुल्यवान बना सकती है। और जिसके अंदर शिक्षा न हो, वह मूल्यवान वस्तु को भी बेकार बना सकती है। इसलिए हमेशा ज्ञान लेने से कभी न कतराएं।
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