अगर आप सूर्य की तरह चमकना चाहते हैं , तो पहले सूर्य की तरह जलें।
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Showing posts from June, 2019
Mehnat ki kamai
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Mehnat ki kamai माधवपुर नाम का एक छोटा गांव था। वहाँ एक मोतीलाल नाम का सेठ रहता था। उसका एक बेटा था जिसका नाम गोपाल था। वह बहुत हि आलसी और कामचोर था , वह दिन भर इधर उधर आवारा लड़को के साथ भटकता रहता था। और घर से पैसे लेकर व्यर्थ की चीज़ो मे बर्बाद कर देता था, इससे सेठ मोतीलाल बहुत चिंतित रहते थे की न जाने क्या होगा इसका भविष्य पैसों के मोल को समझता नहीं है, पढाई लिखाई छोड़ दिया और कुछ काम भी नहीं करता है। एक दिन गोपाल और गांव के एक लड़के के बिच लड़ाई हो गयी और उस लड़के के माता-पिता उसके घर शिकायत करने आ गए । इससे सेठ को बहुत गुस्सा आया और उसने गोपाल को घर से निकाल दिया और कहा दिन भर आवारागर्दी करते हो और अब झगड़े भी करने लगे। निकल जाओ घर से और कुछ कमाके लाओ नहीं तो खाने को नहीं मिलेगा। गोपाल वहाँ से चला गया और एक बगीचे मे जाकर बैठकर सोचने लगा, कि क्या किया जाए पिताजी तो बहुत गुस्से में हैं। कुछ देर बाद वह अपनी माँ के पास गया और कहा - माँ मुझे अभी के लिए कुछ पैसे देदो मैं काम करके तुम्हें पैसे दे दूँगा। माँ को दया आ गयी और उसे कुछ पैसे दे दिए। और वह शाम को पैसे ले जाके पिताजी को
DR RAGHUVANSH SAHAY VERMA - BIOGRAPHY
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DR RAGHUVANSH SAHAY VERMA - BIOGRAPHY डॉ. रघुवंश सहाय वर्मा का जन्म 30 जून 1921 को उत्तर प्रदेश में हरदोई जिला के गोपामऊ कस्बे में हुआ था । उनके दोनों हाथ जन्म से अपंग थे। इस कारण वो 8 वर्ष तक सिर्फ पढ़ना ही सिख पाये थे। अपंगता को हम प्राय: जीवन का अभिशाप मानते हैं। जब हम किसी नेत्रहीन या हाथ-पैर से अपंग इंसान को देखते है , हमारे मन में दया आ जाती है। लेकिन रघुवंश सहाय जी अपने मन में ये संकल्प कर लिया की वो अपने अपंगता को अपनी कमजोरी नहीं बनने देंगे और उन्होंने अपने पैर से लिखना शुरू कर दिया। उनके जीवन में अनेक विपरीत परिस्थितिया आयी लेकिन वो निरंतर आगे बढ़ते ही रहे। उन्होंने पैर से लिखने में महारथ हासिल कर लिया वो जिस तेजी से पैर से लिखते थे वो उन विदवानों से भी संभव न हो सका जो मजबूत हाथ लेकर जन्म लिये। उनका हाथ अपंग था लेकिन उनका मन मजबूत था और उन्होंने ये प्रमाणित कर दिया की कोई व्यक्ति मन से कुछ करने का ठान ले तो वह क्या नहीं कर सकता , यह मन ही तो हैं , जिसमे चाह है ,लक्ष्य है हिम्मत और पवित्रता हैं।महाकवि प्रसाद जी द्वारा लिखी गयी कुछ पंक्तिया मुझे याद आ रही है, जिसमे उन
JIVAN WAHI JO DUSRO KE KAAM AAYE
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JIVAN WAHI JO DUSRO KE KAAM AAYE एक लड़का था जिसका नाम सूरज था। उसका स्वाभाव बहुत ही जिज्ञासु प्रकृति का था। उसे कोई भी नयी चीज के बारे में पता चलता तो वो उसके बारे में जानने के लिए बैचैन हो जाता। वह एक बहुत ही सभ्य घर में जन्म लिया था। लेकिन उसके आस पास का माहौल बहुत ही खराब था इसलिए उसके माँ बाप को चिंता रहता की वो किसी बुरे संगती में न फंस जाये। लेकिन सूरज का चरित्र कुछ ऐसा था जैसा रहिम जी ने दोहे में कहा है " जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग चन्दन विष व्याप्त नहीं लिपटे रहत भुजंग" ।एक दिन सूरज स्कूल से घर आ रहा था तो उसकी नजर शराब की दुकान की तरफ गया तो उसने वहां कुछ लोगो को उल्टी सीधी हरकते करते देखा और घर जाकर अपने पापा से पूछा पापा ये शराब क्या होता है मेने एक दुकान देखा वहां पर और कुछ लोग अजीब तरह के हरकत कर रहे थे। उसके पापा बोले बेटा शराब एक नशें की चीज होती है वो नशे के कारन ऐसा कर रहे थे। सूरज ने कहा : तो पापा ये लोग नशा क्यों करते है। पापा : देखो बेटा शराब में अलकोहल पदार्थ होता है जो शरीर को गर्म रखता है और ये ठंडे प्रदेश में रहने वाले लोग बहुत