वटवृक्ष की छांव - The banyan's tree Shadow
"वटवृक्ष की छांव"
गाँव के बीचोंबीच एक पुराना वटवृक्ष खड़ा था। कहते हैं, जब गाँव बसा भी नहीं था, तब से वह पेड़ वहीं था। उसकी छांव में पीढ़ियाँ पलीं, किस्से कहानियाँ जन्मीं, और थकी ज़िंदगियाँ चैन पाती रहीं।
एक बार गाँव के सरपंच ने सोचा – "इस पेड़ की जगह बाजार बना देते हैं, गाँव की तरक्की होगी।" सभी ने हामी भरी, सिवाय एक बुज़ुर्ग दादी के।
दादी बोलीं –
"ये पेड़ सिर्फ लकड़ी नहीं, ये तो समय का साक्षी है। हमने इसके नीचे सावन बिताए हैं, रामायण सुनी है, और बिछड़े अपनों को याद किया है। ये बाजार से नहीं बदला जा सकता।"
लोगों ने उनकी बात सुनी और पेड़ को बचा लिया।
आज भी उस वटवृक्ष के नीचे गाँव के बच्चे खेलते हैं, बुज़ुर्ग विश्राम करते हैं और हर साल वहाँ सामूहिक पूजा होती है। वह पेड़ अब "गाँव का ह्रदय " बन गया है।
🌿 पेड़ सिर्फ प्रकृति नहीं, हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। उन्हें बचाना, खुद को बचाना है।
--- वटवृक्ष की छांव - The banyan's tree Shadow
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