SHIV TANDAV WITH HINDI MEANING - शिव तांडव स्तोत्रम् (अर्थ सहित)

SHIV TANDAV WITH HINDI MEANING - शिव तांडव स्तोत्रम् (अर्थ सहित)


 शिव तांडव स्तोत्रम् (अर्थ सहित) 

रावणकृतम् – शिव तांडव स्तोत्र लंका के राजा रावण ने रचा था, जब भगवान शिव की स्तुति में उसने अपने वीणा के रूप में अपनी नसों को बजाकर गान किया था।


1.      ॐ 

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।

अर्थ:
जटाओं से गिरती गंगाजल की धारा से पवित्र भूमि पर, गले में सर्पों की ऊँची माला धारण किए हुए, डमरू की डम-डम ध्वनि करते हुए जब शिवजी चण्ड तांडव करते हैं, तो वे हमें कल्याण दें।


2.

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम।।

अर्थ:
जटाओं में उलझी गंगा की लहरें उनके सिर पर शोभित हो रही हैं, ललाट पर अग्नि की ज्वाला धधक रही है और मस्तक पर चन्द्रमा शोभित है। ऐसे शिवजी में मेरी हर क्षण श्रद्धा बनी रहे।


3.

धराधरेन्द्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्तति प्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि।।

अर्थ:
पर्वतराज हिमालय की कन्या पार्वती के साथ विहार करने वाले, जिनकी कृपा-दृष्टि से कठिन आपदाएँ भी नष्ट हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र मानने वाले) शिवजी में मेरा मन आनंद पाए।


4.

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि।।

अर्थ:
जटाओं में सर्प की फणामणि की प्रभा, दिशाओं की देवियाँ कुमकुम से शोभित मुख लिए, हाथी की चमड़ी वस्त्रस्वरूप धारण किए हुए भूतों के स्वामी शिवजी अद्भुत आनंद प्रदान करें।


5.

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः।।

अर्थ:
सूर्य आदि देवता जिनके चरणकमलों की धूलि से विभूषित होते हैं, सर्पमाल से जटाओं को सजाए हुए और मस्तक पर चन्द्रमा धारण किए हुए भगवान शिव हमारे कल्याण के लिए सदा धन-सम्पत्ति दें।


6.

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महा कपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः।।

अर्थ:
ललाट की अग्नि से कामदेव को भस्म करने वाले, देवताओं द्वारा वंदित, मस्तक पर चन्द्रकलाधारी और महाकपालधारी शिवजी की जटाएँ हमें मंगल दें।


7.

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।

अर्थ:
त्रिनेत्रधारी शिव, जिन्होंने अपने ललाट की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर डाला और जो पार्वतीजी के साथ रमण करते हैं, ऐसे भगवान शिव में मेरी भक्ति स्थिर रहे।


8.

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्त्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजि।
कणत्कणद्विनिर्गतं प्रयाणनिर्जरश्रिया
जगज्जयाजयज्जया जयत्वहन्तकाण्डरः।।

अर्थ:
सर्पों की मणियों से बनी माला धारण करने वाले, जिनके चलने पर आकाश में गड़गड़ाहट होती है, और जो यमराज का भी अंत करने वाले हैं, वे जगत के विजेता शिव हमें विजय प्रदान करें।


9.

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे।।

अर्थ:
मैं उस शिवजी की पूजा करता हूँ जो स्मर (कामदेव), त्रिपुरासुर, मृत्यु, यज्ञ, गजासुर, अंधकासुर और अंतकाल (यम) का नाश करने वाले हैं।


10.

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे।।

अर्थ:
जो सदा मंगलदायक हैं, जिनके लिए कल्याणकारी कलाओं का समूह पुष्पित है, और जो कामदेव, त्रिपुर, मृत्यु, यज्ञ, गजासुर, अंधक और अंतकाल का नाश करते हैं, ऐसे शिवजी को मैं प्रणाम करता हूँ।


11.

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि।।

अर्थ:
जिनकी जटाओं में नागफणामणि की आभा लहराती है, दिशाओं की देवियाँ कुमकुम से सुशोभित हैं, और जो गजचर्म धारण किए हुए हैं, ऐसे भूतनाथ शिवजी हमारे मन को अद्भुत आनंद दें।


12.

लसत्प्रफुल्लपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे।।

अर्थ:
जो कामदेव, त्रिपुरासुर, मृत्यु, यज्ञ, गजासुर, अंधकासुर और यमराज का नाश करने वाले हैं, उन महादेव की मैं भक्ति करता हूँ।


समापन श्लोक

इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

अर्थ:
इस प्रकार रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।


🌿 फलश्रुति (फल)

जो व्यक्ति इस स्तोत्र का श्रद्धा से पाठ करता है, उसे भक्ति, शक्ति, यश, आयु, सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है। उसका जीवन कल्याणकारी बनता है और शिवजी की कृपा सदा उस पर बनी रहती है।

ॐ  


हमने पूरी कोशिश की है इसके अर्थ और श्लोक में कोई त्रुटि न हो यदि आपको इसमें कोई त्रुटि मिलती है तो हमे कमेंट में बतायें हम उनका सुधार करेंगे। 

 

 

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